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26/11: मुंबई की वो रात | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

26/11: मुंबई की वो रात 
राइटर: जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

उस शाम, हमले से कुछ देर पहले तक सब कुछ सामान्य था। बल्कि देश के ज़्यादातर घरों में लोग टीवी के सामने बैठे इंडिया-इंग्लैड का मैच देख रहे थे। भारत की जीत के लिए तमाम हाथ प्रार्थनाओं में जुड़े थे, तमाम सजदों दुवाओं में झुके थे। लेकिन उसी दौरान न्यूज़ चैनलों पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश हुई। एक ऐसी ख़बर जिसे देखकर पूरा देश सन्न रह गया।

और.. आ… अभी-अभी मिल रही जानकारी के मुताबिक आ… मुंबई में कई जगहों पर आंतकवादी हमले हुए हैं। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, कामा अस्पताल और होटल ताज समेत कई जगहों पर लोगों की जाने गईं हैं। हमारे संवाददाता बता रहे हैं कि आंतकवादी अभी भी इन ठिकानों पर मौजूद हैं। (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें या फिर इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए बिल्कुल नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें)

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(बाकी कहानी यहां से पढ़ें) देश दहल गया था। मुंबई की हाई-स्क्योरिटी इलाकों में आंतकवादियों के हमले की ख़बर कुछ ही देर में जगंल में आग की तरह हर फैल गयी। पुलिस, सी.आर.पी.एफ. और मरीन कमांडोज़ समेत तमाम सिक्योरिटी एजेंसियां हालात पर काबू करने के लिए कोशिशें करने लगीं। कुछ देर बाद जानकारी आई कि हमलों के पीछे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्करे तैय्यबा है। जिन्होंने फायरिंग और बम धमाके की सीरीज़ को मुंबई के अलग-अलग ठिकानों पर अंजाम देते हुए कई लोगों को बंदी बनाया हुआ है। इनमें छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ओबरॉय ट्राइडेंट और ताज पैलेस, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, नरीमन हाउस, मेट्रो सिनेमा, टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग और सेंट ज़ेवियर कॉलेज में आठ धमाके हुए थे।
सभी लोकेशंस पर आंतकवादियों को घेर लिया गया, सुरक्षा एजेंसियों ने उनसे ताबड़तोड़ मुकाबला करना शुरु कर दिया। ताज होटल में भी दो आतंकवादी छुपे हुए थे जिन्होंने कई हाई-प्रोफाइल शख्सियतों समेत 200 से ज़्यादा लोगों को बंदी बनाया गया था। इनमें हमले की रात ताज होटल में हो रही तीन शादियां में शामिल मेहमानों के अलावा, कई अंतराष्ट्रीय नेता थे। यूरोपियन पॉर्लियामेंट कमेटी के कई डेलीगेट्स भी उस वक्त लॉबी में थे जब हमला हुआ। एके47 थामें दो आंतकवादियों ने कई लोगों को बेरहमी से कत्ल करने के बाद, बाकी लोगों को बंधक बना लिया।
बाकी लोकेशन्स के साथ, दुनिया की नज़रें होटल ताज पर भी टिकी थी। जिसके बाहरी हिस्से की खिड़कियों से धधकती आग की लपटों दिखाई दे रही थीं। आंतवादियों ने होटल के एक टॉवर को आग के हवाले कर दिया। होटल के आस-पास मीडिया की गाड़ियों का जमावड़ा था जहां से हर छोटी-बड़ी गतिविधि को लाइव दिखाया जा रहा था।
जब ये सब हो रहा था उसी वक्त, ताज होटल से बहुत दूर भारतीय नेवी की आर्मरी में हलचल मची थी। आर्मरी यानि वो जगह जहां सेना के हथियार रखे जाते हैं। वहां मार्कोज़ कमांडो की एक टुकड़ी ताज होटल रवाना होने की तैयारी में थी। ‘मारकोज’ इंडियन नेवी की एक स्पोशल फोर्स यूनिट है जो खास ऑपरेशंस करती हैं। मारकोज़ वो मज़बूत मरीन कमांडो होते हैं, जिन्हें एक लंबी और मुश्किल ट्रेनिंग से गुज़रना पड़ता है। उन्हें न सिर्फ जिस्मानी बल्कि मानसिक तौर पर भी इतना मज़बूत बनाया जाता है कि मुश्किल से मुश्किल हालात का भी सामना बहादुरी से कर सकें। मारकोज़ की दो टुकड़ियां पहले जा चुकी थी और तीसरी टुकड़ी भी निकलने की तैयारी में तभी… तभी कमांडिंग ऑफिसर की आवाज़ गूंजी… 
“किसी को डर लग रहा है? अगर हां तो वो अभी यहीं रुक सकता है?”  
नो सर। – एक साथ कई जोशीली आवाज़ें लोहे की दीवारों में गूंज गई। 
गुड। कलेक्ट योर वेपेंस.. एंड मूव उन्होंने कहा तो मारकोज़ ने भरोसा दिलाया कि वो मिशन पूरा करके लौटेंगे। 
“हेलमेट नहीं है?” तभी एक कमांडो ने पूछा तो आर्मरी के प्रभारी ने बताया कि हेलमेट कम हैं। जितने थे वो पिछली टीम ले गई। मारकोज़ टीम के लीडर ने अपनी टीम के लिए उन हथियारों और सुरक्षा उपकरणों का जायज़ा लिया। कम्यूनिकेशन के लिए इस्तेमाल होने वाला रेडियो सेट भी ख़राब था, बुलेट प्रूफ जैकेट पुरानी थी जो एके 47 बुलेट्स का सामना नहीं कर सकती थीं। लेकिन वतन के लिए ज़ज़्बा जब मन में होता है तो सिपाही हर कीमत पर लड़ना चाहता है, जीतना चाहता है। और वही मारकोज़ टीम ने किया।
थोड़ी देर बाद मारकोज़ की टीम आर्मरी से निकलकर मुंबई के ताज होटल के लिए रवाना गयी। 
इधर मुबंई में ताज होटल को NSG ने पूरी तरह घेर लिया था। 
“पीछे हटो, पीछे हटो सब लोग” मीडिया के लोगों को तय घेरे से आगे जाने से रोका जा रहा था। 
कुछ देर बाद सायरन बजाती हुई एक हरी गाड़ी होटल ताज के पास रुकी। जिसमें से कमोफ्लाज्ड यूनिफार्म पहने हुए मारकोज़ की टीम बाहर निकली। वहां जो नज़र आ रहा मंज़र भयानक था। चीख पुकार, मीडिया की भीड़, होटल के एक टॉवर पर आग लगी हुई थी। अंदर फंसे लोगों के रिश्तेदार बाहर रो-बिलख रहे थे। एक टावर की निचली खिड़की से बार-बार फायरिंग की आवाज़ आ रही थी। मारकोज़ ने फ़ौरन पूरे हालात का जायज़ा लिया और वो फैसला लिया जो कोई जाबांज़ कमांडो ले सकता था। फ़ैसला था – होटल के अंदर जाने का। 
ऐसे हालात में जब टीम अंदर जाती है तो टीम का एक शख्स ऐसा होता है जो सबसे आगे चलता है.. कमांडोज़ की भाषा उसे प्वाइंट मैन कहते हैं, ये तय होता है कि एमेरजेंसी हालात में टीम पहला गन शॉट प्वाइंट मैन ही चलाएगा और ये तो तय होता ही है कि सामने से गोली चली तो पहला सीना प्वाइंट मैन का होगा। मारकोज़ का प्वाइंट मैन टीम के साथ आगे–आगे चल रहा था। पीछे तीन और मारकोज़ कमांडो थे। आहिस्ता कदमों से वो होटल ताज के अंदर दाखिल हुए तो उस रौशनी से नहाई लॉबी का मंज़र देखकर हैरान रह गए।
मेन लॉबी जिसे एल्वे एरिया कहते हैं, वहां ख़ून ही खून बिखरा हुआ था। चमचमाते चिकने फर्श पर सजे शानदार फर्नीचर के इर्द-गिर्द कई लाशें औंधी पड़ी थी। कुछ दूर बिखरा हुआ कांच थोड़ी देर पहले हुई भगदड़ की गवाही दे रहा था। कमांडोज़ मौके को ताड़ ही रहे थे कि उनकी नज़र सामने से आते एक आदमी पर पड़ी। अचानक सबने बंदूक तान दी… 
 “रुकिये… रुकिए.. गोली मत चालिएगा प्लीज़.. मैं.. मैं” बादामी सूट पहने हुए वो आदमी दोनों हाथ उठाकर बोला। “कौन हैं आप” बंदूक ताने हुए एक कमांडो ने सख्त लहजे में पूछा तो वो रोता हुआ बोला, “मैं.. मैं यहां का सिक्योरिटी मैनेजर हूं। मेरी बीवी और बच्चा छठे फ्लोर पर फंसे थे… वहां… वहां… आग लग गई…” कहते हुए उसकी कांपती हुई ज़बान लड़खड़ा गयी। उसने अपने जुमले में ‘’थे” कहा… सोचिए कितनी बेबसी, कितनी उदासी, कितनी मायूसी से कहा होगा … क्योंकि जिस तरह की आग की लपटे थी, वहां किसी के बचने की संभवना बिल्कुल भी नहीं थी।
पर उस सिक्योरिटी मैनेजर के जज़्बे को सलाम सलाम कि वो अब भी बाकी लोगों को होटल से सुरक्षित निकालने के लिए रुका था, चाहता तो होटल से भाग सकता था। वो मारकोज़ कमांडोज़ की मदद करने लगा… हालांकि उसे ये नहीं पता था कि आंतकवादी बिल्डिंग के किस हिस्से में छुपे हैं।
बिना हेल्मट, पुरानी बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहने कमांडोज़ के प्वाइंट मैन बहुत ही सावधानी के साथ होटल में आगे बढ़ने लगे। एल्वे एरिया में, होटल की ओल्ड विंग की तरफ एक रास्ता जाता है। वो उसी रास्ते की तरफ बढ़ चले। सामने सीढ़िया थीं, जो जाकर एक शीशे के दरवाज़े पर खत्म होती थीं। और उस दरवाज़े के ठीक सामने एक दूसरा दरवाज़ा था, जो एक बड़े से डायनिंग एरिया में खुलता था।
वो दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगे… तभी एक कमांडोज़ ने कुछ सुना और बाकी साथियों को श्शशशश का इशारा किया। फिर कानों पर हाथ लगाकर बहुत हलकी-हल्की आ रही एक आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगे। 
मारकोज़ वो होता है जो न सिर्फ जिस्म से दस लोगों के बराबर होता है, बल्कि उसकी नज़र और सुनने की ताकत भी आम इंसान से कई गुना बेहतर होती है। आवाज़ सामने वाले दरवाज़े से आ रही थी।
उस कमांडो ने बाकी साथियों को इशारा किया और उस दरवाज़े के पास पहुंचे। सबने एक दूसरे को देखा और हां में सर हिलाया। एक कमांडो आगे, तीन पीछे और उनके पीछे होटल का मैनेजर। दरवाज़े को आहिस्ता से अंदर ढकेला तो कमांडोज़ ने देखा कि अंदर घुप्प अंधेरा था। कमांडो ने हाथ एक तरफ बढ़ाया तो बाईं तरफ दीवार थी। वो उसी दीवार के सहारे आगे बढ़ते जा रहे थे। 
“लाइट का स्विच कहां है” उन्होंने होटल के मनेजर से पूछा तो उसने फुसफुसाते हुए बताया कि इसी दीवार पर आगे है। कुछ आठ-नौ कदम ही वो लोग चले होंगे कि अचानक कमांडो को उस अंधेरे में दो आवाज़ें सुनाई दी। वो चौंक गए।
एक मारकोज़ कमांडो उस आवाज़ को पहचानते थे। वो आवाज़ एके47 के सेफ़्टी कैच को हटाने की थी। सिर्फ उस आवाज़ से वो समझ गए कि कमरे में दो एक47 हैं… जिनका सेफ्टी कैच हटाकर उन्हें सिंगल मोड से बर्स्ट मोड में डाला गया है। यानि दोनों आंतकवादी उसी अंधेरे कमरे में मौजूद थे। शायद, सिर्फ बीस कदम दूर।
इंसानी आंखों का रैटीना, रौशनी से अंधेरे या अंधेरे से रौशनी में आने पर खुद को एडजस्ट कर लेता है, लेकिन उसके लिए पंद्रह से बीस सेंकेड चाहिए होते हैं। कमांडोज़ की टीम ताज होटल की रौशनी से चकाचौंध लॉबी से उस अंधेरे कमरे में दाखिल हुई थी, इसलिए उस अंधेरे हॉल में अभी उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वो कुछ सेकेंड्स का इंतज़ार कर रहे थे ताकि साफ दिखना शुरु हो। अभी वो इंतज़ार कर ही रहे थे कि उन्हें सामने एक हल्की सी रौशनी की किरण चमकती दिखाई दी। 
मतलब साफ़ था, एक एके47 उन पर तान दी गई थी। आंतकवादी काफी देर से अंधेरे में थे, और वो कमांडोज़ को ठीक-ठीक देख सकते थे। 
अचानक दोनों तरफ़ से अंधाधुंध ताबड़तोड़ गोलियां चलना शुरु हो गयी। सामने से जब गोली चलती तो उसकी चिंगारी से चमकने वाली रौशनी में दो डरावने चेहरे दिखाई देते। मारकोज़ कमांडोज़ और उनके साथी पूरी ताकत से सामने की तरफ गोली चला रहे थे। मौत और ज़िंदगी बिल्कुल आमने सामने थे, महज़ चंद कदमों के फ़ासले पर। कमांडोज़ के चेहरे पर कोई डर, कोई घबराहट नहीं थी। वो गोलियां दागते रहे, आगे बढ़ते रहे। उनकी फायरिंग से आंतकवादी पीछे दुबक गए। फायरिंग होती रही। लेकिन ठीक उसी वक्त एक गोली एक कमांडो की कनपटी को फाड़ती हुई निकल गयी।
अचानक सारे मंज़र धुंधलाने लगे, उस कमांडो का सर चकराने लगा। वो दरवाज़ा जहां से वो अपनी टीम के साथ दाखिल हुए थे, वो पीछे सात से आठ कदम की दूरी पर था। नीचे लाल कालीन बिछी थी। कमांडो कालीन पर गिर गये।
उन्हें नहीं पता कि उन्हें कितनी देर बाद होश आया। लेकिन जब कनपटी का गर्म खून चेहरे पर ढलका तो उन्हें हल्का-हल्का होश आया। वो उसी जगह औंधे पड़े थे और दर्द का एक समंदर था जो जिस्म में हिलोरे ले रहा था। ऐसा लगता था जैसे सर का एक हिस्सा दूसरे से अलग हो गया हो। उस कमांडो ने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया कि वो ज़िंदा हैं। क्योंकि कोई भी लड़ाई लड़ने के लिए ज़िंदा होना पहली शर्त है। उस बेशुमार दर्द के बावजूद वो कमांडो खुश थे कि वो आंतकवादियों के खिलाफ लड़ाई जारी रख सकते हैं।
दर्द इस कदर था कि उन्होंने कालीन को मुट्ठी से भींच लिया लेकिन मुंह से आवाज़ नहीं निकलने दी। फिर आहिस्ता से सर उठाकर देखा तो वो अकेले थे। और सामने अंधेरे में दोनों आंतकवादी अबतक खड़े थे। जो समझ रहे थे कि कमांडो उनकी गोली का निशाना बन गए।
वो दरवाज़ा, जहां से कमांडो वापस बाहर जा सकते थे पीछे कुछ कदमों की दूरी पर था। वो चाहते तो चुपचाप ज़मीन पर घिसटते हुए दरवाज़े के करीब आ कर, फायरिंग करते हुए बाहर निकलने की कोशिश कर सकते थे। कोई कुछ नहीं कहता, वो अपने हिस्से की कोशिश कर चुके थे। ज़िंदगी बच सकती थी। लेकिन वो पल जब वो ज़ख्मी हालत में फर्श पर पड़े थे, खून से लथपथ चेहरा लिये तब उन्हें याद आ रहा था उनका गांव। जहां से जब वो सेना में भर्ती होने के लिए निकले थे तो कसम खाई थी कि देश के लिए आखिरी सांस तक लड़ेंगे। 
फैसला हो चुका था, कमांडो ने अंधेरे में लेटे-लेटे ही, बिना हिले-डुले अपने कमर की एक तरफ लगी बुलेट मैगज़ीन चेक की। वो हैरान रह गये, आंतकवादियों की चलाई गयी गोलियां, उनकी कमर पर लगी उस मैगज़ीन में धंसी हुई थी। बेशक मैगज़ीन के वजह से गोलियां उनके जिस्म से कुछ एमएम दूरी पर रुक गयी थीं, लेकिन अब वो मैगज़ीन इस्तेमाल लायक नहीं बची थीं।
कमांडो ने दूसरा हाथ कमर पर लाकर वो ग्रेनेड निकाला जो उनके पास था। आंतकवादी अबतक उनके ज़िंदा होने से अंजान थे। दोनों आंतकवादी सैटेलाइट फोन पर किसी से बातें करते हुए आगे की रणनीति तय कर रहे थे। मारकोज़ ने उसी वक्त ग्रेनेड की पिन निकाली और आहिस्ता से उस तरफ सरका दिया जिधर से आवाज़ आ रही थी। 
उन्होंने अपने हाथों से अपना फटा हुआ सर ढक लिया, क्योंकि ठीक सात सेंकेंड के बाद वहां एक धमाका होना था।
एक – दो – तीन – चार – पांच – छ – सात… सात?…. सात?
धमाका नहीं हुआ। आर्मरी से मिला ग्रेनेड भी पुराना और ख़राब निकला। पहली बार उन्हें उन्हें ज़बरदस्त मायूसी हुई। लेकिन ये वक्त अफ़सोस करने का नहीं, सोचने का था कि अब क्या करना है। सच पूछिए तो बहुत विकल्प थे भी नहीं। 
अच्छी बात ये थी कि कमांडो अब अंधेरे में साफ़-साफ़ देख पा रहे थे। उन्होंने दाएं-बाएं देखा तो उन्हें पीछे की तरफ एक सोफा रखा दिखाई दिया। उन्होंने घिसलते हुए सोफे और दीवार के बीच की जगह में आढ़ ले ली। 
अब, जब वो सोफे की आढ़ मे थे तो उन्होने पहली बार अपनी कनपटी पर हाथ फेरा। गर्म-गर्म खून हाथों में हरारत करने लगा। कनपटी का हिस्सा, कान समेत गर्दन पर औंधा लटक रहा था। दर्द शिद्दत से चीख रहा था। मारकोज़ कमांडो ने वही किया जो उन्हें ट्रेनिंग में सिखाया गया था। उन्होंने दर्द को अपना गुस्सा बनाया और अपनी कमर पर बंदूक तान कर गोलियां दागनी शुरु कर दी।
वो डायनिंग एरिया फिर से गोलियों की ताबड़-तोड़ आवाज़ से गूंज गया। सामने से दोनों आंतकवादी उन कमांडो पर गोली चला रहे थे और इधर से वो अकेल उन दोनों पर अकेले भारी पड़ रहे थे। गोलियां चलती रही, आवाज़ गूंजती रही। कुछ देर फायरिंग चलती रही, तभी कमांडो की एक गोली एक आंतकवादी की गर्दन में सीधी धंस गई और वो मुंह के बल ज़मीन पर ढेर हो गया।
हालांकि गन चलने से लगने वाले हर झटके से वो कमांडो दर्द से कांप जाता क्योंकि गर्दन पर लटकती कनपटी झटके से हिल रही थी। वो दर्द असहनीय था, नज़र धुंधला रही थी। उन्होंने महसूस किया कि वो फिर से बेहोशी महसूस हो रही है। वो सामने से गोली चलाने लगे हालांकि उनकी नज़र धुंधलाने लगी थी। वो दूसरा आंतकवादी छुप कर गोलियां चला रहा था।  
कमांडो का सर चकराने लगा.. निशाना बहकने लगा था… तभी एक गोली सीधे उनके कंधे के पास धंस गयी। वो लड़खड़ाए, और तभी दूसरी गोली उनके सीने के आरपार हो गई। वो संभल पाते इससे पहले ही दो और गोलियां उस पुरानी बुलेट प्रूफ जैकेट को छेदती हुई, उनके फेफड़े को चीर गईं। 
लेकिन इतने पर भी वो कमांडो दरवाज़े तक आ गया, एक आंतकवादी को मारकर और दूसरे को घायल कर के। बाहर आते ही उनकी टीम ने उन्हें संभाल लिया और तुरंत स्ट्रेटर पर लिटाकर उन्हें नेवी अस्पताल ले जाया गया। स्ट्रेचर पर लेटे हुए कैमरों के फ्लैश उसकी आंखों में चमक रहे थे। एमबुलेंस में उनके दो साथी उन्हें बार-बार यही कह रहे थे… सांस लेते रहो… ब्रीथ लेकिन उसके फेफड़े फट चुके थे। वो सांस अंदर तो ले पा रहे थे लेकिन बाहर छोड़ना मुश्किल हो रहा था। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते मारकोज़ बेहोश हो गए।
टीवी चैनलों पर खबरें फ्लैश हो रही थीं। बताया जा रहा था कि सुरक्षा एजेंसियों नें ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो के तहत होटल ताज को आतंकवादियों से आज़ाद करवा लिय़ा। आंतकवादियों के बाकी सभी निशानों पर भी उन्हें मार गिराया गया था। होटल ताज से दो सौ आठ लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया। लेकिन मुंबई के आठ ठिकानों पर हुए हमलों में कुल एक सौ सड़सठ लोगों की जाने गई थी और तीन सौ आठ लोग घायल हुए थे। 
कमांडो की इस यूनिट की तरह न जाने कितने ऐसे लोग थे… जिन्होंने इस मुश्किल वक्त में एक दूसरे का साथ दिया औऱ दिलेरी के साथ खड़े रहे। हम उन सब लोगों पर फ्रख करते हैं… ये हिंदुस्तानी खून और ज़ज़्बे का असर ही है कि हम आज़ादी की अट्ठत्तरवी सालगिरह शान से मना रहे हैं… पर याद रखिएगा… हमारी आज़ादी… ऐसी ही बेशुमार कुर्बानियों पर खड़ी होती है… आप सब लोगों को आज़ादी मुबारक…. 

 

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Source (PTI) (NDTV) (HINDUSTANTIMES)

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