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सियासी जासूसी के वो किस्से, जिन्होंने कभी PMO को घेरा तो कभी केंद्र सरकार बदल दी

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन चर्चा में हैं. उन्होंने दिल्ली में अपनी जासूसी करवाए जाने की आशंका जताई है. इस मामले को लेकर बीजेपी हमलावर है और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को घेर रही है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब देश में नेताओं के पीछे नेताओं के द्वारा जासूसी करवाने का आरोप लगा है. देश के राजनीतिक इतिहास में जासूसी के मामलों में बड़े स्कैंडल्स हुए और सरकारें तक गिर गईं. मामले कोर्ट तक पहुंचे. राजीव गांधी और चंद्रशेखर के बीच का विवाद, हेगडे सरकार में टेलीफोन टैपिंग कांड जैसे जासूसी के कई उदाहरण बताते हैं कि सत्ता की राजनीति में जासूसी का एक लंबा इतिहास रहा है. ऐसे ही कुछ मामलों पर नजर डालते हैं…

दरअसल, देश में स्नूपिंग का इतिहास काफी पुराना और विवादित रहा है. इसमें कई बड़े राजनीतिक विवाद शामिल हैं. केंद्र में चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री पद से और राज्य में रामकृष्ण हेगडे को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा. स्नूपिंग के मामलों ने अक्सर विपक्षी दलों और सत्तारूढ़ सरकारों के बीच संघर्ष को बढ़ाया है. सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों और अपने सहयोगियों पर नजर रखने के कई किस्से सामने आ चुके हैं. जासूसी के ये मामले राजनीति में पारदर्शिता और नैतिकता की कमी को दर्शाते हैं.

चम्पाई सोरेन का मामला क्या है?

चम्पाई सोरेन ने बुधवार को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दिया है और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) छोड़ने का ऐलान किया है. वे शुक्रवार को बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं. आरोप है कि चम्पाई नई दिल्ली में तीन दिन से जिस होटल में ठहरे थे, वहां उन पर लगातार नजर रखी जा रही थी. छिपकर तस्वीरें ली जा रही थीं और वीडियो बनाए जा रहे थे. जब चम्पाई के स्टाफ को शक हुआ तो उन्होंने होटल कर्मचारियों की मदद से दो लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया. पूछताछ में पता चला कि दोनों आरोपी झारखंड पुलिस के स्पेशल ब्रांच के सब इंस्पेक्टर हैं. बाद में दोनों को छोड़ दिया गया. 

क्या एक्शन लिया गया?

इस संबंध में चम्पाई सोरेन के सचिव ने दिल्ली के चाणक्यपुरी थाने में शिकायती पत्र दिया है और एफआईआर दर्ज करवाई है. उन्होंने बताया कि 27-28 अगस्त को चम्पाई का दिल्ली दौरे का कार्यक्रम था. इसी दौरान दोनों आरोपी होटल में गोपनीय तरीके से जासूसी कर रहे थे और फोटो-वीडियो बना रहे थे. ये जासूसी का मामला संदिग्ध प्रतीत हो रहा है. इससे जान को भी खतरा हो सकता है. हालांकि, झारखंड पुलिस ने इस पूरे मामले में सफाई दी है. पुलिस मुख्यालय का कहना है कि जासूसी के आरोप गलत हैं. दोनों अधिकारी सुरक्षा में प्रतिनियुक्ति पर थे और ड्यूटी कर रहे थे. इस पूरे में दिल्ली पुलिस को अवगत करा दिया गया है. वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, चम्पाई सोरेन की लंबे से जासूसी करवाई जा रही थी. दोनों सब इंस्पेक्टर रांची से ही रेकी कर रहे थे. दोनों 26 अगस्त को कोलकाता से उसी फ्लाइट से दिल्ली पहुंचे, जिसमें चम्पाई बैठे थे. होटल में उसी फ्लोर पर रूम बुक कराया, जिस पर चम्पाई रुके थे. ये दोनों लोग मुलाकात करने वालों से लेकर अन्य सारी जानकारी झारखंड सरकार को भेज रहे थे. ऐसा करके हेमंत सोरेन सरकार अपने ही मंत्री की निजता का हनन कर रही है. इस काम में एक महिला भी लगी हुई थी. इससे पहले भी जब चम्पाई सोरेन दिल्ली आए थे तब दोनों सब इंस्पेक्टर उनकी निगरानी कर रहे थे. एक पूर्व मुख्यमंत्री को पिछले 5 महीने से सर्विलांस में रखा हुआ है.

नेहरू के जमाने से जासूसी…

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जमाने से राजनीतिक जासूसी के आरोप लगते आ रहे हैं. साल 1962 में नेहरू कैबिनेट के पावरफुल मंत्री टीटी कृष्णमाचारी ने फोन टैपिंग का आरोप लगाया था. उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर बीएन मलिक को सीधे घेरा था. हालांकि, बाद में ये मामला शांत हो गया और आगे मुद्दा नहीं उठाया गया.

इंदिरा शासन में जासूसी और फोन टैपिंग पर विवाद 

वक्त इंदिरा गांधी के शासनकाल का था. इमरजेंसी (1975-1977) के दौरान व्यापक रूप से फोन टैपिंग और विरोधियों की जासूसी करवाए जाने के आरोप लगे. उस समय विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, और कार्यकर्ताओं की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रहार किए गए. यह जासूसी स्वतंत्रता की आवाजों को दबाने के लिए की गई थी, जिसमें फोन टैपिंग, निगरानी और सेंसरशिप शामिल थे. यह घटना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय मानी जाती है. आरोप लगा कि ये जासूसी सत्ता को बचाने और विपक्ष को कमजोर करने के लिए की गई थी. फोन टैपिंग का एक और किस्सा चर्चा में रहा है. साल 1980 में जब इंदिरा गांधी चौथी बार प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने अपनी कैबिनेट में ज्ञानी जैल सिंह को गृह मंत्री बनाया. इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर रहे मलय कृष्ण धर ने अपनी किताब ‘ओपन सीक्रेट्स इंडियन इंटेलिजेंस अनवील्ड’ में जासूसी का जिक्र किया है. एमके धर के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने IB को अपने ही गृह मंत्री ज्ञानी पर नजर रखने के लिए कहा था. इंदिरा के आदेश पर ही ज्ञानी जेल सिंह और जरनैल सिंह भिंडरांवाले के बीच बातचीत को रिकॉर्ड किया गया था. ये रिकॉर्डिंग इंदिरा को सौंपी गई थी. भिंडरावाले ही ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह बना था. 

2 साल बाद ज्ञान जैल सिंह देश के राष्ट्रपति बने. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. इस बीच, साल 1987 में ज्ञान जैल सिंह और राजीव के बीच रिश्ते इतने खराब हो गए कि चर्चाएं सियासी गलियारे में होने लगीं. राजीव ने आईबी को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की जासूसी करने को कहा. मलय कृष्ण धर किताब में लिखते हैं- वो डिवाइस पीएमओ में कहीं बहुत ऊंची जगह पर लगी हुई थी. ये डिवाइस इतनी शक्तिशाली थी कि वहीं से राष्ट्रपति भवन के अंदर लगे एक खास टेलीफोन से हो रही बातचीत को रिकॉर्ड कर लेती थी. इस बातचीत के रिकॉर्डेड टेप समय-समय पर राजीव गांधी को उपलब्ध कराए जाते थे, जिससे उन्हें लुटियंस जोन में मौजूद इस महल की दीवारों के अंदर रची जाने वाली साजिशों के बारे में गहरी जानकारी मिलती रहती थी. हालांकि ज्ञानी जेल सिंह को इस बात का अंदाजा था, इसलिए वे मेहमानों से राष्ट्रपति गार्डन में मुलाकात करते थे. 

राजीव गांधी ने क्यों करवाई थी जासूसी?

एमके धर अपनी किताब में इस जासूसी के पीछे राजीव और ज्ञानी जैल सिंह के बीच बिगड़े रिश्तों की तरफ इशारा करते हैं. चर्चाएं थीं कि तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह कभी राजीव सरकार को बर्खास्त करना चाहते थे. चूंकि, ज्ञानी कभी कांग्रेस के बड़े नेता थे. पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे. ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद ज्ञानी अमृतसर में गोल्डन टेंपल का दौरा करने पहुंचे. वहां की तस्वीरें देखकर विचलित हुए और उनके मन में रोष पैदा हुआ. इधर, इंदिरा गांधी भी उन्हें पंजाब का माहौल खराब करने के पीछे जिम्मेदार मानती थीं. राजीव जब पीएम बने तो उन्होंने ज्ञानी से दूरी बना ली. राजीव ने ज्ञानी के करीबी आरके धवन को भी उनके पद से हटा दिया. ऐसे कई घटनाक्रम सामने आते हैं. 

इंदिरा गांधी पर अपनी बहू और बीजेपी नेता मेनका गांधी के घर पर भी IB से जासूसी करवाने का आरोप लगा था. एमके धर ने खुद स्वीकार किया था कि उन्होंने इंदिरा गांधी के कहने पर जासूसी करवाई थी. आईबी ने मेनका के सभी दोस्तों की भी जासूसी की थी और उनकी बातचीत को टेप किया था. मैगजीन के संपादकीय बोर्ड की भी जासूसी करवाई गई थी.

चंद्रशेखर ने अपनी ही सरकार पर लगाए आरोप

बात 90 के दशक की है. उस समय देश में हलचल, राजनीतिक अस्थिरता, सत्ता के लिए रेस का दौर था. राजीव गांधी बोफोर्स घोटाले में फंसे थे. उन्हें अपने पुराने सिपहसलार वीपी सिंह की बगावत का सामना करना पड़ रहा था. 1989 के चुनाव में राजीव गांधी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी बहुमत से दूर रह गई. जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने. उन्हें बीजेपी और वाम दलों का समर्थन हासिल था. वीपी सिंह का छोटा कार्यकाल अहम रहा, लेकिन उनकी सरकार चल नहीं पाई. उनकी ही पार्टी के नेता चंद्रशेखर ने आरोप लगाया कि उनका फोन टैप किया गया है. चंद्रशेखर का कहना था कि मेरे खिलाफ खुफिया ‘लिसनिंग डिवाइस’ लगवाया गया. वीपी सिंह सरकार ने आरोपों का खंडन किया, लेकिन चंद्रशेखर हमेशा उनसे नाराज रहे. हालांकि, ये आरोप सिर्फ आरोप ही रह गए.

जब चंद्रशेखर को छोड़ना पड़ा था पीएम पद

अक्टूबर 1990 में उस समय राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे पर लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा निकाल रहे थे. वीपी सिंह ने बिहार में जनता दल के मुख्यमंत्री लालू यादव से बात की और आडवाणी को गिरफ्तार करवा दिया. उसके बाद बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार अल्पमत में आ गई. वीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. इधर, चंद्रशेखर ने 64 सांसदों के साथ जनता दल छोड़ दिया और समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया. नवंबर 1990 में चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी. तीन महीने बाद 2 मार्च 1991 को हरियाणा पुलिस के सिपाही प्रेम सिंह और राज सिंह को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया. आरोप लगा कि दोनों सिपाही दिल्ली में राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर जासूसी करने के लिए भेजे गए थे. दोनों सिविल ड्रेस में थे. पूछताछ में दोनों ने स्वीकार किया कि उन्हें कुछ सूचना जुटाने भेजा गया था. मामले में राजनीति गरमाई. कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया. संसद में फ्लोर टेस्ट की नौबत बन गई. इस बीच, चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 21 जून 1991 तक चंद्रशेखर कार्यवाहक पीएम के रूप में काम करते रहे. कांग्रेस का आरोप था कि सरकार उनके नेता राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है. राजीव के घर के बाहर पुलिसकर्मी तैनात कर उनकी गतिविधियों की निगरानी की जा रही है. राजीव गांधी ने इसे संसद में भी मुद्दा बनाया था.

मलय कृष्ण धर ने अपनी किताब ‘ओपन सीक्रेट’ में एक और जासूसी के बारे में खुलासा किया है. वे लिखते हैं- 90 के दशक में राजीव गांधी और वीपी सिंह के बीच सियासी अदावत थी. जनवरी 1992 में मुझे साउथ ब्लॉक स्थित PMO से जुड़ा एक काम मिला. ये काम था- PMO की इलेक्ट्रॉनिक जांच कर ये पता लगाना कि क्या वहां जासूसी के डिवाइस लगे हुए हैं? PMO के इलेक्ट्रानिक डिवाइस की जांच के दौरान मुझे तब हैरानी हुई, जब मैंने एक वीवीआईपी फोन का मुआयना किया. इस फोन के अंदर एक छोटी सी मशीन थी और एक छोटा सा रेडियो मॉनिटरिंग मशीन थी. फोन से पीएमओ में बैठने वाले इस अफसर की बातें रिकॉर्ड की जा रही थीं. लेकिन ये रिकॉर्डिंग किसके कहने पर हो रही थी और इस रिकॉर्डिंग को सुनता कौन था? इसके बारे में भी किताब में जिक्र किया गया है.

मलय कृष्ण धर लिखते हैं कि जिस फोन की रिकॉर्डिंग हो रही थी, उसका इस्तेमाल तत्कालीन प्रधानमंत्री का एक सहायक अधिकारी करता था. ये पीएमओ की सुरक्षा में चूक का बेहद गंभीर मामला था. इस डिवाइस को उस टेलीफोन में प्लांट किसी और ने नहीं, बल्कि IB ने ही किया था और ये काम वीपी सिंह के दौर में हुआ था. इससे आईबी को PMO में होने वाली अहम हलचलों के बारे में सुराग मिलता रहता था. एमके धर आगे लिखते हैं, मेरी समझ में ये रिकॉर्डिंग आखिरकार अंतिम रूप से राजीव गांधी के पास पहुंचाई जाती थी. जासूसी के इस उपकरण की जानकारी जनवरी 1992 में तब हुई, जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. इससे पहले ही नवंबर 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिर चुकी थी और 21 मई 1991 को लिट्टे के हमले में राजीव गांधी अपनी जान गवां चुके थे. उन्होंने लिखा, तेजी से हो रहे राजनीतिक और नौकरशाही में बदलावों के बीच कोई पीएमओ से जासूसी उपकरणों को हटाना भूल गया था. मैंने कुछ इलेक्ट्रॉनिक डिबगिंग ऑपरेशन करते हुए इसे ठीक किया. देश के सर्वोच्च पद की पवित्रता के लिए मैं इतना ही कर पाया. हालांकि, उन्होंने अपनी किताब में ये नहीं बताया कि वे किसके आदेश से PMO का मुआयना करने गए थे और आईबी को पीएमओ में ये डिवाइस लगाने के लिए किसने कहा था?

जब प्रणव मुखर्जी ने दफ्तर की जासूसी का लगाया था आरोप…. 

बात जून 2011 की है. प्रणब मुखर्जी केंद्रीय वित्त मंत्री थे. उस समय उनके दफ्तर में भी जासूसी का मामला सामने आया था. मुखर्जी ने कहा था कि उनके दफ्तर की जासूसी करवाई जा रही है. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जांच कराने के लिए चिट्ठी लिखी थी. मुखर्जी का कहना था कि उनके दफ्तर में 16 अहम जगहों पर चिपकने वाले पदार्थ देखे गए हैं. आशंका है कि मंत्रालय के कामकाज पर नजर रखने की कोशिश की जा रही है. उस दौरान गृह मंत्रालय की कमान पी. चिदंबरम के हाथों में थी. इसकी जांच के आदेश जारी किए गए, लेकिन जासूसी के अन्य मामलों की तरह इसकी जांच का भी कोई नतीजा नहीं निकला. IB ने बयान में कहा कि मुखर्जी के दफ्तर की कोई जासूसी नहीं की गई. IB ने उन चिपकने वाले पदार्थ को महज च्विंगम बताया था. बाद में प्रणव मुखर्जी ने भी कहा कि IB की जांच में कुछ नहीं मिला था. तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह का भी बयान आया था. उन्होंने कहा था कि आईबी ने मुझे रिपोर्ट भेजी है और जानकारी दी है कि वहां इस तरह की कोई बात नहीं है. प्रणब मुखर्जी साल 2012 से 2017 तक राष्ट्रपति रहे हैं. अगस्त 2020 में उनका निधन हो गया.

रामकृष्ण हेगडे और टेलीफोन टैपिंग विवाद 

बात 1988 की है. जनता पार्टी के नेता रामकृष्ण हेगडे कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. हेगडे पर आरोप लगे कि उन्होंने विपक्षी नेताओं और अपने ही सहयोगियों के टेलीफोन टैप करवाए हैं. इस विवाद ने भारतीय राजनीति में जासूसी के एक और उदाहरण के रूप में जोर पकड़ा. आखिरकार हेगडे को इस्तीफा देना पड़ा. हेगडे लगातार दो बार 1983 और 1985 में चुनाव जीते और सरकार बनाई. उन्हें गैर कांग्रेसी खेमे से संभावित पीएम फेस के तौर पर देखा जाने लगा. उस समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार बोफोर्स मामले को लेकर विवादों में घिरी हुई थी. संसद में राजीव सरकार से कर्नाटक में फोन टैपिंग पर सवाल पूछा गया, जिसके बाद राजीव ने एजेंसियों को जांच के आदेश दिए. दरअसल, राजीव सरकार के लिए यह मामला एक मौके की तरह था. जांच में सामने आया कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने करीब 50 नेताओं, मंत्रियों और बिजनेसमैन के फोन टेप करने के आदेश दिए थे. इनमें हेगडे के विरोधी भी शामिल थे. सामने आया कि एक पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी ने टेलिकॉम विभाग से कर्नाटक के नेताओं, व्यापारियों और पत्रकारों के फोन टेप करने की बात कही थी. विवादों के बीच सीएम हेगडे सफाई देते रह गए. पार्टी हाईकमान ने इस्तीफे के लिए कह दिया. आखिरकार 10 अगस्त 1988 को हेगड़े को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा.

तमिलनाडु में शशिकला ने किसकी करवाई थी जासूसी?

शशिकला और जयललिता से जुड़े जासूसी मामलों ने भी भारतीय राजनीति में काफी विवाद और चर्चाएं पैदा की हैं. इन मामलों ने सत्ता और राजनीति में जासूसी के इस्तेमाल और निजी स्वतंत्रता के उल्लंघन के मुद्दों को उजागर किया है. 2017 में यह आरोप सामने आया कि तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की मौत के बाद उनकी करीबी सहयोगी वीके शशिकला ने जयललिता के घर के स्टाफ और पार्टी नेताओं की जासूसी करवाई थी. यह जासूसी शशिकला के राजनीतिक नियंत्रण को बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी. आरोप यह भी था कि शशिकला ने जयललिता के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनकी जासूसी की और उनकी गतिविधियों को नियंत्रित करने की कोशिश की. यह विवाद उस समय और भी बढ़ गया जब जयललिता की मौत को लेकर रहस्य गहराया और शशिकला की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई.

नीरा राडिया टेप कांड 

साल 2008 में कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया की सैकड़ों ऑडियो क्लिप सामने आई थीं. इसमें वे पत्रकारों, नेताओं और कॉरपोरेट जगत से जुड़े लोगों से बातचीत करते नजर आई थीं. इस घटनाक्रम ने राजनीति और मीडिया के संबंधों पर सवाल खड़े किए थे. इस बातचीत को साल 2008-2009 मे आयकर विभाग ने टेप किया था. हालांकि, बाद में सीबीआई ने जांच की और नीरा को 8 हजार टेप से जुड़े मामले में क्लीन चिट दे दी. सीबीआई का कहना था कि जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर किसी भी मामले में केस दर्ज किया जा सके.

दरअसल, तत्कालीन वित्त मंत्री को 16 नवंबर, 2007 को एक शिकायत मिली थी. आरोप लगाया गया था कि नीरा राडिया ने महज 9 साल के भीतर ही 300 करोड़ रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया है. इसके बाद नीरा राडिया के टेलीफोन की टेपिंग शुरू की गई. सरकार ने कुल 180 दिन तक नीरा राडिया के टेलीफोन की टैपिंग की थी. आयकर विभाग ने 50 सीलबंद लिफाफों में हजारों टेप अदालत में पेश किए थे. टेप के सार्वजनिक हो जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि वो इन कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट ब्रोकर का काम कर रही थीं.

कर्नाटक में सरकार नहीं बचा पाए थे कुमारस्वामी?

बात 2018 की है. कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से JDS की सरकार बनी. मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को बनाया गया. कुमारस्वामी को लगा कि कुछ बागी विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने बागी विधायकों के फोन टैप करने के आदेश दिए. सालभर तक फोन टैप किए गए. हालांकि, कुमारस्वामी सरकार नहीं बचा सके और राज्य में सत्ता का उलटफेर हो गया. बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने फिर कर्नाटक में सरकार बना ली.

पेगासस स्पाईवेयर कांड 

हाल के वर्षों में सबसे बड़ा स्नूपिंग विवाद पेगासस स्पाईवेयर कांड रहा, जिसमें आरोप लगे कि सरकार ने पेगासस नामक स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए. यह मामला संसद में उठा और बड़े राजनीतिक हंगामे का कारण बना. इसके अलावा, आधार कार्ड के डेटा सुरक्षा और नागरिकों की निजता पर भी सवाल उठे हैं. कई बार यह आरोप लगाए गए हैं कि सरकार ने आधार के जरिए नागरिकों की निगरानी की है.

ये मामले भी चर्चा में रहे

– साल 2013 की बात है. बीजेपी के दिवंगत नेता अरुण जेटली उस समय राज्यसभा में बीजेपी के नेता थे. जेटली ने फोन टेप कराए जाने का आरोप लगाया था. मामले में दिल्ली पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने कोर्ट में 32 पेज की चार्जशीट फाइल की. जिन चार लोगों को आरोपी बनाया गया, उनमें दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल अरविंद डबास और तीन प्राइवेट डिटेक्टिव्स शामिल थे.

– बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी यूपीए शासनकाल के दौरान जासूसी करवाए जाने का आरोप लगाया था. इस पर संसद में काफी हंगामा हुआ और इसकी जांच करने की मांग की गई. लेकिन सरकार ने आडवाणी के आरोपों का खंडन किया और कहा कि जांच की जरूरत नहीं है.

साल 2010 में आडवाणी ने अपने ब्लॉग में फोन टैपिंग की कई घटनाओं का खुलकर जिक्र किया था. आडवाणी ने 1985 की एक घटना का जिक्र करते हुए लिखा, एक सुबह एक अजनबी मेरे घर आया जिसके हाथ में कागजों से भरा ब्रीफकेस था. उसने कहा कि ब्रीफकेस में डायनामाइट है जो सरकार को उड़ा सकता है. उसने अपना ब्रीफकेस खोला और करीब 200 पन्नों का ढेर लगा दिया जिसमें कई वीआईपी की टेलीफोन बातचीत का रिकॉर्ड दर्ज था. वैसे मुझे सारे दस्तावेज उतने विस्फोटक नहीं लगे लेकिन उनमें से कुछ कागजों में मेरे और अटल बिहारी वाजपेयी से हुई बातचीत का ब्यौरा था. मुझे तब और हैरानी हुई जब इन दस्तावेजों में विपक्षी नेताओं के साथ-साथ कई नामी पत्रकार और ज्ञानी जैल सिंह जैसे प्रतिष्ठित हस्तियों की बातचीत भी रिकॉर्ड थी. आडवाणी ने बताया था कि 25 जून 1985 को इमरजेंसी की 10वीं वर्षगांठ के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान वाजपेयी ने मुझे बताया कि उनके और मेरे फोन पर नजर रखी जा रही है. 1996 में जब देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे, उस समय पूर्व गृह मंत्री एसबी चव्हाण की अगुवाई में एक उच्च स्तरीय कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने उनसे शिकायत की थी कि पीवी नरसिंह राव और कई अन्य कांग्रेसी नेताओं के फोन टेप किए जा रहे हैं जो उत्तरप्रदेश सरकार करवा रही है.

– तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी के दफ्तर की जासूसी का मामला मार्च 2012 में सामने आया. यह बात तब सामने आई, जब मिलिट्री इंटेलिजेंस के कुछ अफसर रक्षा मंत्री के दफ्तर का रुटीन चेक कर रहे थे. हालांकि, यह मामला राजनीतिक विवाद में उलझकर रह गया. रक्षा मंत्रालय की इस बात के लिए आलोचना की गई कि जांच मिलिट्री इंटेलिजेंस से क्यों नहीं कराई गई?

– साल 2020 में जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच अनबन चल रही थी तो पायलट ग्रुप ने भी कई विधायकों के फोन टैप होने के आरोप लगाए थे. गहलोत ने कहा था कि पायलट खेमा सरकार गिराने की साजिश रच रहा था.

क्यों करवाई जाती है नेताओं की जासूसी?

नेताओं की जासूसी के मामलों में अक्सर राजनीतिक संघर्ष, असुरक्षा या सत्ता को नियंत्रित करने की कोशिशें किए जाने के आरोप लगते आए हैं. जानकार कहते हैं कि जासूसी का प्रमुख कारण सत्ता को बनाए रखना और राजनीतिक विरोधियों की गतिविधियों पर नजर रखना है. सत्ताधारी नेता अपने विरोधियों के प्लान और गतिविधियों के बारे में जानना चाहते हैं ताकि वे अपने राजनीतिक कदमों को उसी के अनुसार तैयार कर सकें. राजनीति में प्रतिस्पर्धा बहुत तेज होती है. नेताओं को हमेशा इस बात का डर होता है कि उनका विरोधी उनकी कमजोरी का फायदा उठा सकता है, इसलिए वे अपने प्रतिद्वंद्वियों की जासूसी कर यह जानने की कोशिश करते हैं कि उन्हें कहां और कैसे चुनौती दी जा सकती है.

इसके अलावा, राजनीति में आपसी विश्वास की कमी भी एक बड़ा कारण है. नेता अक्सर अपने ही पार्टी सदस्यों पर भरोसा नहीं करते और उन्हें संभावित धोखा देने वाले के रूप में देखते हैं. इस स्थिति में जासूसी एक रक्षा तंत्र के रूप में काम करती है. कई बार नेताओं की जासूसी उनके निजी जीवन के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए भी करवाई जाती है. इन सूचनाओं का उपयोग उन्हें ब्लैकमेल करने या राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जा सकता है. जासूसी के जरिए नेता अपने विरोधियों की रणनीति, योजनाओं, और राजनीतिक चालों को पहले से जानकर अपनी रणनीति को और मजबूत बना सकते हैं, इससे उन्हें चुनावी लाभ भी मिल सकता है.

Source (PTI) (NDTV) (HINDUSTANTIMES)

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