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जहां नहीं खिसक रही थी मिट्टी, वहां टूट रहे पहाड़… क्या नैनीताल में आने वाली है बड़ी आपदा?

एक अंग्रेज भूगर्भ शास्त्री मिडल मिस ने 19वीं सदी में नैनीताल का सर्वे किया था. उसने कहा था कि अगर मुझे नैनीताल के संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करना पड़े तो तय है कि मुझे गालियों की बौछार झेलनी पड़ेगी, क्योंकि मिट्टी तब भी खिसक रही थी, अब भी खिसक रही है. तब समस्या कम थी लेकिन अब बहुत ज्यादा… 

नैनीताल तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी है. ऊपर मल्लीताल की तरफ नैना पीक. एक तरफ अयारपाटा और एक तरफ शेर का डांडा पहाड़ी. नीचे तल्लीताल की तरफ शहर की नींव बलियानाला. अब बलिया नाले के साथ-साथ इन तीनों पहाड़ियों में भूस्खलन हो रहा है. ये नैनीताल के लिए अच्छा संकेत नहीं है. भूवैज्ञानिक बताते हैं की नैनीताल की भार सहने की क्षमता खत्म हो चुकी है. अगर यहां किसी भी तरह का निर्माण पूरी तरह से नहीं रोका गया है तो शहर धंस जाएगा.  

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बलियानाला पांच दशकों से धंस रहा है… इलाज कुछ भी नहीं

बलिया नाला क्षेत्र में 1972 से लगातार भूस्खलन हो रहा है. इसके बावजूद भी सरकार इस क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोकने में असफल रही है. बलियानाला ही नैनीताल की बुनियाद है जो सालों से धंस रहा है. आज तक वैज्ञानिक तरीके से इसका कोई उपचार नहीं किया गया. अगर यह धंसा तो पूरा नैनीताल धंस जाएगा.

भूस्खलन से अब तक कई घर बलिया नाले में समा चुके हैं. अब इस भूस्खलन ने राजकीय इंटर कॉलेज तल्लीताल की सीमा को छू लिया है. यह आबादी तक पहुंच गया है. नैनीताल की तरफ बढ़ने लगा है. नाले में साल 1867 में सबसे पहले भूस्खलन का रिकॉर्ड उपलब्ध है. 

बलियानाला भूविज्ञान के हिसाब से ओल्ड बलियानाला आलूखेत के बगल और कैलाखान के नीचे से शुरू होता है. बीरभट्टी तक जाता है. इनमें जो चट्टानें हैं वो चूने की है. इनमें गुफाएं बन जाती हैं पानी से और उनमें पीला रंग निकलता है. इसे ऑक्सीडेशन रिडक्शन कहते हैं. ओल्ड बलियानाला हर साल 60 सेंटीमीटर से एक मीटर खिसक रहा है. जिस दिन ये पूरा धंसा वो दिन नैनीताल के लिए प्रलय से कम नहीं होगा.  

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तीनों तरफ की पहाड़ियां लगातार दरक रही हैं, धंस रही हैं

नैनीताल की अयारपाटा हिल पहाड़ी में डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो रहा है. यह तेजी से बढ़ रहा है. इससे डीएसबी कॉलेज के केपी और एसआर महिला छात्रावास को भारी नुकसान हुआ है. अयारपाटा पहाड़ी पर डीएसबी कॉलेज के पास भूस्खलन का बड़ा कारण वहां की फॉल्ट लाइन है. 

यह राजभवन, डीएसबी गेट, फ्लैट, ग्रैंड होटल और सात नंबर तक एक्टिव है. पिछले दो तीन सालों से मॉल रोड धंस रही है. यहां पूरा एक जोन धंस रहा है. ये फाल्ट दो तीन सालों से बहुत सक्रिय हो चुका है. इस हिल पर मौजूद फेमस पिकनिक स्पॉट टिफिन टॉप भी हाल ही में भूस्खलन की वजह से धंस गया. पूरी तरह से खत्म हो गया. 

अब नैनापीक से भी भूस्खलन शुरू हो गया है. इसे चाइना पीक भी कहते हैं. रुक- रुककर विशालकाय चट्टानें नैना पीक से नीचे की तरफ गिरती रहती हैं. नीचे रहने वाली आबादी को खतरा है. 

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नैनीताल की संवेदनशील पहाड़ी अल्मा हिल जिसमें 1880 का विनाशकारी भूस्खलन हुआ था, उसमें भी पिछले वर्ष से भूस्खलन शुरू हुआ. यह हर दिन बढ़ता जा रहा है. 

शेर का डांडा पहाड़ी में भी मूसलाधार बरसात में 18 अक्टूबर 2021 की रात 1 बजे भारी भूस्खलन हुआ था. जिससे पहाड़ी से भारी बोल्डर और पेड़ मलबे के साथ बहते हुए आए, जिससे क्षेत्र में रह रहे 4 परिवारों के घर पूरी तरह जमींदोज हो गए थे. लोगों ने भागकर जान बचाई थी. 
 
अंग्रेजों के समय नैनीताल में शुरू हुआ था भूस्खलन आपदा प्रबंधन

अंग्रेजों द्वारा यहां उठाए गए कदम पहाड़ में भूस्खलन रोकने के लिए आज भी कारगर हो सकते हैं बशर्ते उनका उपयोग किया जाए. नियमों को सख्ती से लागू किया जाए. भारत में भूस्खलन आपदा प्रबंधन की शुरुआत नैनीताल से हुई थी. नगर में 1841 में बसावट शुरू होने के बाद 18 सितंबर 1880 को भारी भूस्खलन हुआ था. 151 लोग मारे गए थे. उस समय 16 से 18 सितंबर के बीच 40 घंटे में लगभग 838 मिमी बारिश हुई थी.  

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मां नयना देवी मंदिर भी इसकी चपेट में आया. वर्तमान फ्लैट्स मैदान ने शक्ल ली. इसी हादसे की वजह से नया राजभवन बना. पहले स्टोन ले जो शेर का डांडा पहाड़ी पर है. बाद में स्नो व्यू हेरिटेज जो अल्मा हिल पहाड़ी पर स्थित माल्डन स्टेट में राजभवन था. इन दोनों पहाड़ी में इसके निकट भूस्खलन होने के बाद राजभवन को नए स्थान पर बनाने की कवायद हुई. नया राजभवन अयारपाटा की पहाड़ी पर बनाया गया.  

1880 से पहले भी 1867 में नैनीताल में भूस्खलन हुआ. जिसमें एक विशालकाय चट्टान चार्टन लॉज क्षेत्र से नीचे आया. हालांकि जानमाल का नुकसान नहीं हुआ. इस भूस्खलन के बाद नैनीताल में अंग्रेजों ने हिलसाइड सेफ्टी कमेटी बनाई. कमेटी की सिफारिशों को तत्काल प्रभाव से लागू किया गया. 
 
भूस्खलन रोकने के लिए नैनीताल में बनाए गए थे 60 नाले

सर हेनरी रामसे जो 1856 से 1884 तक कमिश्नर थे, उन्होंने तब जीएसआई के वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक डॉ. मिडल मिस से राय ली थी. वाइल्ड ब्लड्स ने भूस्खलन के स्थाई निदान के लिए 60 नाले बनाए थे. नैनीताल की चारों ओर की पहाड़ियों से पानी निकासी का प्रबंध किया गया. 79 किमी लंबे 60 नालों का निर्माण हुआ. ये आज भी भूस्खलन रोकने में मदद करते हैं. साथ ही पूरे शहर में नालियों का निर्माण हुआ.

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अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नाला.

इन नालियों के ऊपर किसी भी प्रकार के अतिक्रमण की अनुमति नहीं थी. अंग्रेजों के समय में नैनीताल में निर्माण के नाम पर कुछ ही खूबसूरत कोठियां थी. हर कोठी में एक टेनिस कोर्ट था. हिलसाइड सेफ्टी कमेटी ने कहा कि सभी टेनिस कोर्ट में टर्फिंग की जाए. इनके नीचे ड्रेनेज की व्यवस्था हो. ताकि पानी की निकासी सही से हो सके.

बांज के पेड़ों की पांच प्रजातियां लगाई गई थीं… 

अंग्रेजों ने बांज (OAK) की 5 प्रजातियों (बांज, रिंगाज, फलीहाट, तिलौंज, खरसू ) के पेड़ों का वनीकरण नैनीताल से लेकर किलबरी तक किया. जंगल विकसित किए गए. पर्यावरण को समृद्ध रखने में बांज के जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका है. बांज की जड़ें वर्षा जल को अवशोषित करने व भूमिगत करने में मदद करती हैं. इससे जलस्रोतो में प्रवाह बना रहता है. बांज की लम्बी व विस्तृत क्षेत्र में फैली जडे़ मिट्टी को जकड़ कर रखती हैं. जिससे भूकटाव नहीं हो पाता. 

अंग्रेजों ने बनाए थे तीन जोन- सेफ, अनसेफ, प्रॉहिबिटेड

अंग्रेजों ने नैनीताल में तीन जोन बनाए. एक Safe Zone, दूसरा Unsafe Zone और तीसरा Prohibited Zone. सेफ जोन में निर्माण की अनुमति थी. अनसेफ जोन में व्यक्ति अपने जोखिम पर हल्का-फुल्का निर्माण कर सकता था. यहां प्राकृतिक आपदा में होने वाले नुकसान पर सरकार का कोई उत्तरदायित्व नहीं होता. न तो मुआवजा मिलता. न ही पुनर्वास. तीसरा निषिद्ध जोन इसमें किसी निर्माण की अनुमति नहीं थी. आज स्थिति यह है कि नैनीताल में 90% निर्माण निषिद्ध क्षेत्र में हो रहा है. 10% निर्माण असुरक्षित क्षेत्र में किया जा रहा है. 

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अभी कौन सा जोन कहां है

सेफ जोन… नैनीताल का बड़ा बाजार क्षेत्र, तल्लीताल का रिक्शा स्टैंड क्षेत्र, सेंट जोसेफ कॉलेज, जिला न्यायालय, कलेक्ट्रेट सेफ.  

अनसेफ जोन… नैना पीक पहाड़ी के नीचे वाला हिस्सा, मेल रोज कंपाउंड, अयारपाटा पहाड़ी में डिग्री कॉलेज के ऊपर वाला हिस्सा, तल्लीताल में लॉन्ग व्यू एरिया, गुफा महादेव और किशनापुर. 

प्रॉहिबिटेड जोन… अल्मा हिल पहाड़ी जिसमें 1880 में भयानक भूस्खलन हुआ था. शेर का डांडा पहाड़ी. बलिया नाले के ऊपर का रईस होटल का हिस्सा, मनोरा पीक, हनुमानगढ़ी मंदिर.  

अंग्रेजों ने बनवाए थे चाल-खाल

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पहाड़ों पर इसे कहते हैं चाल-खाल. 

अंग्रेजों ने नैनीताल में चाल और खाल बनाए थे. नैनीताल में चारों तरफ वाटर बॉडीज बनाई थी जिनमें बरसात का पानी जमा होता था. इन वॉटर बॉडीज से साल भर पानी रिसता हुआ नैनी झील में जाता था. साल भर झील में पानी की कमी नहीं होती थी.  

पहाड़ी दरारों को चिकनी मिट्टी से भर गए थे अंग्रेज

भूविज्ञानी बताते हैं कि अंग्रेजों ने आपदा प्रबंधन के लिए भूवैज्ञानिकों से सर्वे करा के नाले बनाए. अब बहुत सारी ऐसी जगह है जहां पर नालें (रेबाइन्स) दिखते ही नहीं है. जबकि नाले वहां हैं. कितनी भी बरसात हो जाए पानी बाहर नहीं आता सीधा अंदर ही अंदर झील में जाता है.  

अंग्रेजों ने नैनीताल के पहाड़ों में फिशर हैं. गहरी दरारें हैं. चूना मिट्टी की गुफाएं हैं. उन्हें सख्त चिकनी मिट्टी से भर दिया था. शेष भारतीयों पर छोड़ दिया था. पर वो दोबारा भरी ही नहीं गईं. नैनीताल में सात नंबर पहाड़ी, कुमाऊं विश्वविद्यालय के पीछे की पहाड़ी यह सब चूना मिट्टी की पहाड़ियां हैं.  इनमें बहुत बड़ी दरारें होती हैं. यह दरारें बहुत गहरी और एक 1 मीटर से ज्यादा चौड़ी होती हैं. 

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बरसात का पानी इन दरारों में घुसता है. इन चट्टानों के टूट कर गिरने का और भूस्खलन का कारण बनता है. 1880 तक जितनी बिल्डिंग नैनीताल में बन गई थी उसके बाद निर्माण पर रोक लगा दी थी. खनन पर रोक थी. छोटे-छोटे टेरेस जहां पर अब लोगों ने खोदकर घर बना लिए इस तरह का निर्माण बिल्कुल बंद था. 
 
अंग्रेजों ने कहा था कि नैनीताल मैं जितने भी स्टीप स्लोप हैं सात नंबर पहाड़ी, चाइना पीक, अयारपाटा की पहाड़ी, टूटा पहाड़ इन सारे स्लोप को पेड़ लगाकर पूरी तरह भर दें. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अंग्रेजों ने जानवर चराने और घास काटने पर भी पूर्ण रोक लगा दी थी.

प्राकृतिक वेटलैंड में निर्माण प्रतिबंधित था 

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वेटलैंड पर किया जा रहा कब्जा. 

 वेटलैंड वह जगह होती है जहां 6 महीने पानी से भरे रहते थे. बाकी के महीने दलदली रहते थे. इन वेटलैंड का मुख्य काम साल भर नैनी झील को अंदर ही अंदर पानी की आपूर्ति करना होता था. नैनी झील का मुख्य वेटलैंड सूखाताल झील थी जो बरसात में पानी से भरी रहती थी. यह वेटलैंड साल भर नैनी झील को पानी देता था. 

दूसरा महत्वपूर्ण वेटलैंड अयारपाटा पहाड़ी पर शेरवुड कॉलेज के गेट के पास और टिफिन टॉप पहाड़ी पर है. लेकिन आज इन वेटलैंड में पूरी तरह से अतिक्रमण हो चुका है. वेटलैंड का अस्तित्व लगभग खत्म है. शहर में जितने भी वेटलैंड थे, उनपर कब्जा हो चुका है. जबकि इन वेटलैंड पर निर्माण पूरी तरह से प्रतिबंधित था.  

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स? 

बहुमंजिला इमारतें टूटनी चाहिए, ग्रुप हाउसिंह बंद होनी चाहिएः डॉ. रावत

इतिहासकार एवं पर्यावरणविद अजय रावत कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल में बहुमंजिला इमारत बनाने पर रोक लगाई है. नैनीताल में ग्रुप हाउसिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है. डॉ. अजय रावत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 674/1993 और इसमें यह निर्णय हुआ था कि नैनीताल में बहुमंजिला बिल्डिंग नहीं बनेंगी. पर नैनीताल में अब भी उनका निर्माण जारी है. डॉ. रावत कहते हैं यह सारी बहुमंजिला इमारतें टूटनी चाहिए.

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यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है. दूसरा ग्रुप हाउसिंग बंद करी गई थी पर ग्रुप हाउसिंग अब भी पूरे शहर में बनती जा रही है. यह ग्रुप हाउसिंग भी पूरी तरह समाप्त होनी चाहिए. उन्होंने कोशिश की थी कि नैनीताल शहर को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर दिया जाए. यह पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने किया भी था. 

भारत में जैसे माथेरान है. माउंट आबू है. यह सब वेटलैंड हो गए थे. कुछ प्रदेशों में तो वेटलैंड घोषित कर दिए थे लेकिन उत्तराखंड में वेटलैंड घोषित नहीं किया. अगर उत्तराखंड सरकार नैनीताल को वेटलैंड घोषित कर देती तो यहां टाउन प्लानिंग गजब की होती और पैसे की कोई कमी नहीं रहती. क्योंकि पैसा फिर केंद्र सरकार देती.

वन विभाग ने चाल-खाल बनाकर सरकारी पैसे का दुरुपयोग कियाः पद्मश्री अनूप साह

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टिफिन टॉप जो पहले कभी शानदार पिकनिक स्पॉट होता था, अब वहां पर बस सीढ़ियां बची हैं. बाकी धंस गया. 

पद्मश्री अनूप शाह बताते हैं कि अयारपाटा पहाड़ी में टिफिन टॉप के पास जो वेटलैंड था वह एक बड़ा मैदान था. पूरी घास थी, उसको वन विभाग ने खोदकर चाल-खाल बना दिया. घास स्वत: ही पानी सोखती है. चारों तरफ देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ यह मैदान बहुत ही खूबसूरत था. नगर के अधिकांश लोग यहां पर पिकनिक मनाने के लिए आते थे. अब उस मैदान को खोदकर वन विभाग ने वहां पर चाल खाल बना कर सिर्फ सरकार के पैसे का दुरुपयोग किया है. 

नैनीताल झील के साथ-साथ भीमताल झील, सातताल झील, नौकुचिया ताल झील और खुरपाताल झील के भी सारे वेटलैंड अतिक्रमण की चपेट में है. अंग्रेज शासन के इस भूस्खलन आपदा प्रबंधन ने नैनीताल को आज तक बचा के रखा है. जरूरत है पूरे शहर में नालियों से अतिक्रमण पूरी तरह हटाया जाए.  

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पहाड़ों की भौगोलिक संरचना बेहद जटिल, कमजोर और संवदेनशील हैः अभिषेक मेहरा

कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्री अभिषेक मेहरा ने बताया कि नैनीताल हिमालय की तलहटी पर स्थित भूगर्भी संरचना के आधार पर बना है. यहां की पहाड़ियां एक कॉम्प्लेक्स स्ट्रक्चर का समूह है. यहां की शैले व पहाड़ियां, जिसमे प्रायः स्लेट और डोलोमाइट पाए जाते हैं. यह यहां की सरंचना को काफी संवदेनशील बनाते हैं. नैनीताल झील की बात करें तो यह एक भूगर्भीय दर्रा है, जिसका नाम नैनीताल लेक फाल्ट है. जोकि बलियानाला से नैनीताल झील से नैना पीक होते हुए कुंजाखडक तक जाता है. 

इसी के साथ यहां पर अनेकों छोटे-छोटे दर्रे मौजूद हैं. इन्ही दर्रों के कारण यह की चट्टानें काफी टूटी-फूटी और कमजोर हैं. इसका उदाहरण है बलिया नाला फॉल्ट, जिसकी तलहटी पर टूटी चट्टानें हैं. नैनीताल के शेरवुड पहाड़ी की बात करे तो यह फॉल्ट का फुट वॉल है, जहां की चट्टानें मेजर्ली डोलोमाइट से बनी है. 

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टिफिन टाप के उपरी भाग पर जो डोरोथी सीट जोकि एक फॉल्ट एस्कार्पमेंट है जिसमे अभी पानी रिसने से भू धंसाव हुआ है. झील की दूसरी पहाड़ी शेर का डांडा है जो की हैंगिंग वॉल (उठा हुआ हिस्सा) है जिसकी शैले स्लेट्स से निर्मित है. ये काफी कमजोर और संवेदनशील हैं. अधिक भार देने से लैंडस्लाइड का खतरा है. 

नैनीताल में लगातार हो रहे अनियिमत निर्माण और ड्रेनेज मिसमैनेजमेंट की वजह से खतरा बढ़ गया है जिसका साक्षय है बलिया नाला का भूस्खलन, अयार पाटा पहाड़ी, अल्माहिल, शेर का डांडा पहाड़ी, खूपी गांव आदि अनेक जगह हो रहा भूस्खलन. 

जहां पहले कभी भूस्खलन नहीं होता था, वहां भी हो रही घटनाएं… डॉ. गिरीश रंजन तिवारी

कुमाउं यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. गिरीश रंजन तिवारी कहते हैं कि बीते पांच वर्षों से नैनीताल नगर चारों ओर से भूस्खलन की चपेट में है. हल्द्वानी मार्ग से नीचे बालियानाला क्षेत्र में तो भूस्खलन का इतिहास 150 वर्षों से भी ज्यादा का है. चिंता की बात यह है कि बीते 25 वर्षों और खासकर इन पांच वर्षों में अनेक ऐसे स्थानों पर भूस्खलन हुआ है जहां पहले कभी ऐसी घटना नहीं हुई थी. 

लोअर माल रोड, आयारपाटा पहाड़ी में पाषाण देवी मंदिर के निकट, टिफिन टॉप आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां पहले भूस्खलन का इतिहास नहीं था. इसके अलावा चार्टन लॉज क्षेत्र, किलबरी रोड, खूपी गांव आदि क्षेत्रों में भी नए स्थानों पर भूस्खलन होना चिंता की बात है. इसका मुख्य कारण भारी निर्माण कार्य, पेड़ों का कटान, नालों की सफाई न होना. नगर में लगातार बढ़ रहे ट्रैफिक का दबाव है.

Source (PTI) (NDTV) (HINDUSTANTIMES)

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